Monday, September 27, 2010

Main Student No. 420

I wrote this one when I was in First Professional M.B.,B.S.

मैं Student No. 420
RNT की सलाखों से बाहर देखता हूँ,
दिन, हफ्ते, महीनों को Semester में बदलते देखता हूँ|
इसके Cafe से मुझे किसी सस्ते ढाबे की खुशबू आती है,
इसकी Building मुझे Central Jail नज़र आती है|

वो कहते हैं यह College है,
फिर क्यूँ यह मुझे School से बदतर लगता है?
वो कहते हैं मैं इसका Student हूँ,
फिर क्यूँ यह मुझे अपना नहीं लगता है?


मैं Junior No. 420
RNT के गलियारों से गुज़रता हूँ,
यारों की धीमी साँसों, तेज़ धडकनों को सुनता हूँ|
Canteen की खुशबू उनमें तफरी की चाह जगाती है,
पर Quantum की याद इच्छा को ठंडा कर जाती है|

वो कहते हैं की यह दस्तूर है,
फिर क्यूँ यह मुझे अत्याचार लगता है?
वो याद दिलाते हैं की यह तो कुछ भी नहीं,
तो यह मुझे उनका प्यार लगता है|


मैं Roll No. 49
L.T. की ओर रुख करता हूँ,
बड़े विश्वास से Class में कदम रखता हूँ,
Class के माहौल से Semester के Result की बू आती है,
और साथ ही डर के मारे बदन में कंपकंपी छूट जाती है|

वो कहते हैं की मैं Pass हुआ हूँ,
फिर क्यूँ मुझे Fail से बदतर लगता है?
इसीलिए यारों, यार अगर ढकनी हो तो,
खुद Pass होना भी नहीं भाता है|