Friday, August 29, 2008

इंसान, इंसान से घबरा रहा

इंसान, इंसान से घबरा रहा

धमाकों की गूँज से ज़र्रा ज़र्रा थर्राह रहा
यह देख भारत माँ का दिल कराह रहा
देख आज इंसान, इंसान से घबरा रहा

कहीं रहीम को रुला, वह "हे राम" का नारा लगा रहा
राम को मौत की नींद सुला कोई "रहीम का बंदा" कहला रहा
देख आज इंसान इंसानियत को भुला रहा

कोई हरी पताका, कोई भगवा ध्वज फहरा रहा
गली गलियारों, चौक चौबारों में रंग लाल बह रहा
देख आज इंसान ख़ुद को विधाता कह रहा

भाषा धर्म के नाम पर इंसान बरगला रहा
और सत्ता का लोभी वह हैवान बेखौफ हंस रहा
देख आज इंसान , इंसान का तमाशा बना रहा

गरीब और गरीब, और अमीर, अमीर होता जा रहा
आम ज़िन्दगी से नेता और नेता से आम इंसान कतरा रहा
देख कैसे आज इंसान, इंसान से घबरा रहा

जो इस धरती पर जन्मा, गुणगान कहीं और के कर रहा
यह देख मेरी माँ का दिल पसीज पसीज कर रो रहा
देख आज इंसान मिटटी से बेगाना हो रहा

खून के कतरों, मांस के चीथ्रों में वोट बीन रहा
सुरक्षा की तोप और मवेशी के चारे में नोट गिन रहा
कितना नीचे देख , आज इंसान गिरा जा रहा

तमाशबीन न तुम, तमाशबीन न मैं
तमाशा है ख़ुद, हर वह इंसान
जो हाथ पर हाथ धरे यह तमाशा देखे जा रहा

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